Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 393
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीआठ कर्मप्र कृति ॥१९२॥ www.kobatirth.org. वखाणीएं रे ॥ १ ॥ औदारीक तिम वैक्रीय आहारक तैजषसुंरे, कार्मण पंच शरीर; जाणुंरे जाणुंरे तीन शरीरतणा वलीरे ॥ २ ॥ करचरणादिक तीन उपांग मनोहरुरे, पन्नर बंधन जोडी; बोलुंरे बोलुंरे औदारीक औदारीककुंरे ॥३॥ औदारीक तैजस तिम कार्मण दो वलीरे, वैक्रीय वैक्रीय जोइ; वैक्रीरे वैक्रीरे तैजस कार्मण दो भलीरे ॥ ४ ॥ आहारक आहारक नामे बंधन जाणजोरे, आहारक | तैजस भेद; आहारकरे आहारकरे कार्मणसाथे दो सहीरे ॥ ५ ॥ तैजस तैजस कार्मण बंधनुंरे, | कार्मण कार्मण भेद; पनरसरे पनरसरे बंधन श्री जिन ते कोरे ॥ ६ ॥ औदारीक पुद्गल बांध्या बांधतारे, मेले जीव संघात; बंधनरे बंधनरे लीख समोवडि जाणज्योरे ॥ ७ ॥ दंतालीमेले तृण तिम संघातनुंरे, पुद्गल मेलें जीवः पंचयर पंचयर औदारीक वैक्रीय तथारे ॥ ८ ॥ आहारक तैजस कार्मण संघातन कह्यांरे, छ संघयण वीचार; पहिलं पहिलंरे वज्र ऋषभ नाराचकुंरे ॥ ९ ॥ बीजो त्रीजो ऋषभनाराचकुंरे, चोथो अर्धनाराच; किलीकारे किलीकारे छेव छहुं करे ॥ १० ॥ हाडतणुं छट्टु संघयण वखाणीएरे, हवे संस्थान वीचार; जाणुंरे जाणुंरे समचउरंस भलुं सदारे ॥ ११ ॥ For Pitvale And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोलवि चार स्तवनम् ॥१९२॥

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