Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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Gyamandi
स्तवनम्
देवलाव
बीजानुं वर्णन कहुंछं ते सहि ॥ २॥ लाख अट्ठावीस विमान प्रभु मुखे कह्या, लाख अट्ठावीस प्रासाद सवि सुखे लह्या; कोड पंचास बिंब छे शाश्वता एहवां, लाख चाळीश उपर ते मेरु जेहवां ॥३॥ बारलाख विमान त्रीजा देव लोकना, प्रासाद बारलाख कह्यां जिनराजना; एकवीश कोड ने साठलाख जिनवरा, बारलाख घंटा ते वाजे भलिपरा ॥४॥ आठलाख प्रासाद विमान पण आणीए, आठलाख घंटा ते भविका जाणीए; चौदकोडी जिनबिंब च्यालीस लाख उपरे, ए चोथा माहेंद्रनी संख्या एणीपरे ॥५॥
ढाल-२-बीजी ॥ गोकुल मथुरारे वाला-ए देशी॥ पंचमं ब्रह्म देवलोक, भवि वंदो नरनारीना थोक; च्यार लाख विमान, लखच्यार घंटा तेह सयान-जिनजीने वंदो रे भविका ॥ ए टेक ॥॥१॥ लखच्यार प्रासाद जाणो, जिनबिंब सातकोड तेह प्रमाणो; वीशलाख उपर सार, संख्या कही छे अतिह उदार ॥ जिनजीने ॥ २॥ छठे लांतिक अपार, सहस्सपचाश ते जाणो सार; प्रासाद पण इणीरीते, नेउलाख ने जिन बिंब जितो
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