Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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श्री देवलोक
शां. ३२
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प्रासाद सुहंकरु, चार सहस्स जिनमान हो जिणंदराया० ॥ १ ॥ जिनजी बसें जिन उपर जाणजो, पंचम ग्रैवेयकनी सारहो जिणंदराया ॥ जिनजी छहुं सौम्यनामे ग्रैवेयक भलुं विमान छत्रीश प्यारहो जिणंदराया ॥ २ ॥ जिणजी छत्रीश प्रासाद दीपता, चार सहस्स जिनराज हो जिणंद| राया ॥ जिनजी त्रिक सयवीस जिन सार छे, छट्टा सौम्यनुं साज हो जिणंदराया ॥ ३ ॥ जिनजी सौमनस नामे सातमुं, आठमुं प्रीतिकर जाण हो जिणंदराया ॥ जिनजी आदित्य मैवेयक सुंदरं, ए त्रिकनी संख्या आण हो जिणंदराया ॥ ४ ॥ जिनजी ए त्रिकनी संख्या कहुं, एकसो विमान सुखकार हो जिणंदराया ॥ जिनजी एकसो प्रासाद दीपतां, जिन बिंब बारहजार हो जिणंदराया ॥ ५ ॥ जिनजी नवत्रैवेयकनी संख्या कहुं, त्रणसें अढार विमान हो जिणंदराया ॥ जिनजी त्रणसें अढार प्रासाद छे, एकसो वीश जिनमान हो जिणंदराया ॥ ६ ॥ जिनजी सर्व मली जिन बिंब कहुं, सहस्स अडत्तीस सार हो जिणंदराया ॥ जिनजी एकसो साठ पडिमा कही, फत्ते चतुर वारंवार हो जिणंदराया ॥ ७ ॥
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स्तवनम्
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