Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
संयमश्रेणीनुं
स्तवनम्
www.kobatirth.org.
जन्म जरा मरण रहित सहज अकृत्रिम व स्वरूपानंदी एवा श्री वीर परमात्मा हे भव्यो ! तमे ध्यान रूप भाव घरमां ध्यावो ॥ ८ ॥
गाथा - संवत् नंदन निधि मुनिचंद्रे, देव दयाकर पायो; प्रथम जिनेश्वर पारणदिवसे, | स्तवना कलश चढायोरे-भले ० ॥ ९ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भावार्थ:- नंदक० नव, ९ निधिनव, ९ मुनि सात ७, चंद्र १ आंकना वामतउगति रिति वचनात् - एटले संवत् १७९९ नां वर्षे देवदयानो करणहार पाम्यो अर्थात् तेनां शासनने पाम्या. प्रथम जिनेश्वर श्रीआदिनाथे वरसी तपनुं पारणं इक्षुरसे श्रेयांसने हाथे कीधुं ते दिवसे संयम श्रेणि गर्भित श्री वीरप्रभुनां स्तवनरूप प्रासादे कलश चढाव्यो एटले पूरुं कीधुं. हवे आगली गाथामां गुरुनी परंपरा जणावे छे. ॥ ९ ॥
गाथा - विजय देव सूरीश पटोधर, विजयसिंह सवायो; सत्य शिष्यधर कपूरविजय विबुध, खिमाविजय पुण्य पायोरे-भले० ॥ १० ॥
For Pitvate And Personal Use Only
अर्थ सहित