Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 371
________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. Achan Kailas Gyamandi -04- संयमश्रेणी- स्तवनम् अर्थ सहित ॥१८॥ गाथा-श्रद्धा ज्ञान लह्यांछे तो पण, जो नवि जाय पमायो; वंध्य तरु उपम ते पामे, संयम ठाण जो नायोरे-भले० ॥३॥ । भावार्थ-हवे संयम श्रेणिनो महिमा कहीए छीए. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान पाम्याछे तो पण जो प्रमाद स्थानक न जाय तो वांझीयां फल रहित वृक्षनी उपमां पामेछे. (राजा श्रेणिकनी पेठे अथवा सत्यकी विद्याधरनी पेठे जो संयम स्थानके न आव्यो होय तो)॥३॥ | गाथा-जिम खर चंदन भारनो वाहक, भारतो भोगी कहायो; तिणिपरे ज्ञानी संयम हीनो, सद्गति ए नवि जायोरे-भले ॥४॥ al भावार्थ:-जेम गर्दक-गधेडो चंदननो भार धारण करतो छतो भारनोज भोगी कहेवायछे. किंतु ते चंदननी सुगंध तेने प्राप्त थती नथी. तेवीज रीते संयमथकी हीन ज्ञानी पण सद्गतिए जइ शकतो नथी. अर्थात चारित्र विना एकला ज्ञानीने पण सदगति प्राप्त थती नथी. यदुक्तम् लासन ॥१८॥ For Pale And Personal use only

Loading...

Page Navigation
1 ... 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411