Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
संयम
श्रेणीनुं
स्तवनम्
॥१७९॥
www.kobatirth.org
६४ वर्ग वर्गों २५६ घन कंडक गुणोपि २५६ यथोचित स्थानके संख्या करवी -वर्ग ८ तथा छ कंडक घन ६ तथा चार कंडक वर्ग ४ तथा उपर एक कंडक १ शोभन संयम परिणाम रूप छे ए केम जाणीए जे माटे अनंत गुण वृद्ध प्रथम स्थानकथी हेठल असंख्य गुण वृद्धनां स्थानक कंडक प्रमाण गयाछे अने असंख्यगुणनां एक एक स्थानकने हेठल अनंत भाग वृद्धनां स्थानक कंडक वर्ग १ कंडक घन ३ कंडक वर्ग ३ कंडक १ प्रमाण पामीये ते माटे ए सर्वने कंडक गुणा करी | जे थाय ते सरवालो करी राखीए असंख्य गुणवृद्धने उपर कंडक वर्ग १ कंडक वर्ग ३ कंडक १ पामीए ते पूर्व राशिमां प्रक्षेपीए त्यारे यथोक्त मानथाय यदुक्तं - पंचसंग्रहे - " अड कंडक बग्गा, चत्तारि वग्ग छग्घना कंड; चउ अंतर बुढीए, हेठठाण परूवणाए १ ॥” इति चतुरंतर मार्गणा ॥ | हवे पर्यवज्ञाननी मार्गणा कछे पर्यवसान एटले छेहडो तेनी मार्गणा ते षट् स्थानक पूरे थये जाणवी मूलथी कहेतां धुरथी संयम स्थानक फरसी वीर परमेश्वर जगतनां नायक केवल ज्ञान वरे॥८॥
For Pitvale And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ सहित
॥ १७९ ॥