Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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Acharya Sh Kailasagar
Gyanmandi
संयम
स्थानक केटलां गयां एम कोइ एकांतरे पूछे ते वारे एम प्रकाशीये-एक कंडक अने कंडकवर्ग श्रणीनुं
प्रमाण जे माटे हेठल असंख्य भाग वृद्धिनां स्थानक कंडक मात्र गयांछे-अने एक एक असंख्य स्तवनम्
भाग वृद्धिनां स्थानने हेठल एक एक अनंत भाग वृद्धनुं कंडक गयुंछे असंख्यात भाग वृद्धनां
स्थान कंडकः ॥ ३॥ * त्रुटक–दाखीए गुण संख्यातथी वली असंख्य अनंत गुणथी तथा, पढम ठाणथी एक
अंतर कंडकवर्ग कंडक यथा; "इत्येकांतर मार्गणा” एक अंतर मार्गणा कही सुणो इयंतर मार्गणा, संख्यात गुणथी हेठे स्थानक अनंत भागनां शुभमना ॥४॥
भावार्थः-एमवली संख्यातगुण वृद्धनां स्थानकथी असंख्यातभाग वृद्धनां स्थानक तथा असं| ख्यातगुण तथा अनंतगुण वृद्धिनां प्रथम स्थानकथी हेठल संख्यातभाग वृद्धिनां तथा संख्यातगुण वृद्धिनां स्थानक एकांतरमार्गए केटला पामीये एम कोइ पूछे ते वारे एम कहीएजे कंडक वर्ग अने
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