Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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संयम
सहन
भावार्थ:-संख्यात भाग वृद्धि पर्यंत सर्व समुदाये मीडां शत १०० एकडा वीस २० बगडा श्रेणीनुं चार ४ एतावता संख्यात भाग वृद्धD कंडक १ असंख्यात भाग वृद्धना कंडक ५ अनंत भाग वृद्धना स्तवनम् कंडक पचवीस २५ एटला स्थानक भागवृद्धिमां थयां हवे गुण वृद्धि मांहे थाय ते कहीए छीए
हवे आगल संख्यात गुण वृद्धिन स्थानक आवे तेने ठामे एक जगडो स्थापीये एटले संख्यातगुण वृद्धि मांहि प्रथम उत्तम स्थान ३ जाणवू एरीते वली चार बगडा वीस एकडा गर्भित शत मीडां
अनंतर बीजो त्रगडो आवे इम चार बगडा थाय ए चार बगडे संख्यात गुणे वृद्ध रूप कंडक थियुं चोथा त्रगडाने अनंतर वली चार बगडा वीस एकडा शत मीडां थापीये ॥४॥
गाथा-वीस बीआं शत एका पणसय बिंदु मान, असंख्यात गुण वृद्धिनो चोको धुरि मंडाण; इम चउ चोका आणतां त्रिक वीस द्विक शत जोय, पंचमय एकडा मीडां पचवीस सय होय ॥५॥
भावार्थ:-सर्व मली संख्यात गुण वृद्धि पर्यंत त्रगडा ४ बगडा २० एकडा शत १०० मीडां
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