Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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स्तवनम्
जौनपकाउल्लास ॥१॥ जादव कुल शिर सेहरो, ब्रह्म चारि भगवंत; श्री नेमिश्चर वंदिये, जेहनाः दशीनुं गुण अनंत ॥२॥
| ढाल-१-ली ॥ राग मल्हार-देखी कामिनी दोय, के कामें व्यापीयो रे; के कामें व्यापीयो ए देशी ॥ नयरि निरुपम नाम द्वारामति दीपति हो लाल ॥ द्वारा ॥ धनवंत धर्मि लोक देव पुरि जिपति हो लाल ॥ देव ॥ यादव सहित गदाधर राज करे जिहां हो लाल ॥ गदा ॥ उपगारि अरिहंत
प्रभु आव्या तिहां हो लाल ॥ प्रभु ॥१॥ अंतेउर परिवार हरि वंदन गयां हो लाल ॥ हरि ॥ प्रददाक्षिणा देइ त्रण्य प्रभु आगल रह्यो होलाल ॥ प्रभु ॥ देशना देइ जिनराज सूंणे सह भाविया है। हो लाल ॥ सुणे ॥ अरिया अमृत वयण सूणि सुख पाविया हो लाल ॥ सुणि ॥ २॥ हरि तव जोडी
हाथ प्रभुनें इम कहे हो लाल ॥ प्रभु ॥ सकल जंतुनां भाव जिनेश्वर तुंलहे हो लाल ॥ जिने ॥ वर्ष दिवसमा कोइक दिन एक भाखियें हो लाल ॥ कोइक ॥ थोडे पुण्ये जेहथी अनंत फल चाखिये हो लाल ॥ अनंत ॥३॥
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