Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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Gamandi
संयम
अर्थ
श्रेणीनुं
स्तवनम्
CAREIAS
“अथ श्री पंडित उतमविजयजीकृत संयमश्रेणिर्नु स्तवन अर्थ सहित” ॥ सकलपंडितचक्रचक्रवर्ति पं० श्री खिमाविजयगणि शिष्य मुख्य पं० पर्षदभामिनीभाल तिलक पं० श्री जिनविजयगणिगुरुभ्यो नमः सिद्धिबुद्धिविधायिने श्रीमदगौतमस्वामिने नमः
श्री वर्द्धमानजिनं नत्वा, वर्द्धमानगुणास्पद; खोपज्ञ संयमश्रेणि, स्तवस्यात्ों वितन्यते ॥ १॥
ढाल-१-पहेली ॥ प्रथम गोवाला तणें भवेजी ॥ए देशी ॥ केवल ज्ञान दिवा-12 |करुजी, सिद्ध बुद्ध सुखदाय; आतम संपद भोगवेजी, वर्धमान जिनराय ॥ गुणोदधि
शासननायक वीर ॥ मेरु महीधर धीर० गुणो दधि शासन नायक वीर॥ए आंकणी ॥१॥ ___ भावार्थः समस्त केवल ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयथी उत्पन्न थयु जे केवल ज्ञान तद्रुप सूर्य समान एवा वली ॥ सिद्ध के०६॥क्षायिकभावें सकलगुण निष्पन्न सिद्ध छे। बुद्ध के०, सकल वस्तु खभावनां जाण छे ॥ सुखदाय के० उपगारी पणे सर्व सुखनां दातार छे ॥ आत्म संपदा अनंत गुण पर्याय रूप स्याद्वाद पणे परिणमती तेने भोगवे छे ॥ एहवा वर्द्धमान खामि चोवीशमा
शा. २८
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