Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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चोवीश जिन
॥१२९॥
हो लाल, के अजीत; एक कोडा कोड सागर ऋषभने वीरने हो लाल, के ऋषभने०॥६॥अंतर काल आंतरानुं जाणो जिन चोविशनो होलाल, के जिन; सहस बेंतालीश तीन वर्ष वली जाणीए हो लाल; के स्तवनम् वर्ष; साडा आठ महीना उणा ते वखाणीए हो लाल, के उणा; नवसें ऐंसी वर्षे होय पुस्तक वांचना हो लाल , के पुस्तक० ॥७॥ ___ ढाल-४-चोथी ॥ दिन सकल मनोहर ॥ ए देशी॥जायो आदि जिणेशर, त्रीभुवननो अवतंसः।
नाभिराजा मारुदेवा, कुल मानु सर हंस; सर्वार्थ सिद्धथी, च्यव्या इक्ष्वाकु भूमि वर ठाम; अशाड ||8 वदि चोथ ने दीने, अवतयाँ पुरुष प्रधान ॥१॥ चैत्र वदि आठम दीने, जनम्या श्री जिनराज; आवे । इंद्र इंद्राणी, प्रभुजीनां गुण गावे; सुनंदा सुमंगला, वरीआ जोबन पाय; भरतादिक एकसो, पुत्र पुत्री दोय थाय ॥२॥ करी राज्यनी स्थापना, वासी वीनीता इंद्र; जग नीती चलावे, मारु देवीनो नंद; सवि शिल्प देखाडे, वारे जुगलो आचार; नर कला बहोतेर; चोशठ महीला सार ॥३॥ ॥१२९॥ भरतादीकने दीए, अंगादिकनु राज्य; सुरनर एम जंपे, जय जय श्री जिनराज; दीए दान
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