Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendo
श्री रोहिणी तपनुं
www.kobarth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ४ ॥ नाग पुरवित शोक भुपाल, तस पुत्र अशोक कुमार; वरमाला कंठे ठावे, नृप रोहिणी ने पर णावे ॥ पनोता० गुरु०॥ ५ ॥ परिकरशुं सासरे जावे, अशोकने राज्ये ठावे; प्रिया पुण्ये वधी बहु रिद्धी, वीतशोके दिक्षा लीधि ॥ पनोता० गुरु० ॥ ६ ॥ सुख विलसे पंच प्रकार, आठ पुत्र सुता थइ च्यार; रहि दंपति सातमे मालें, लघु पुत्र रमाडे खोले ॥ पनोता० गुरु० ॥ ७ ॥ लोकपाला भिधान ते बाल, रहि गोखे जुए जन चाल; तस सन्मुख रोति नारी, गयो पुत्र मरण संभारी ॥ पनोता ० गुरु ॥८॥ शिर छाती कुटे मलि केती, माय रोती जलांजली देति; माथानां केश ते रोले, जोइ रोहिणी कंतने बोले ॥ पनोता० गुरु०॥ ९ ॥ आज में नवुं नाटक दीयुं, जोतां बहु लागे मीढुं; नाच शिखि किहांथी नारी; सुणी रोषे भय | नृप भारी ॥ पनोता ० गुरु० ॥ १० ॥ कहे नाच शिखो इणि वेला, लेइ पूत्र बाहिर दिए झोलां; करथी विछढ्यो ते बाल, नृप हा हा करे तत्काल ॥ पनोता० गुरु० ॥ ११ ॥ पुर देव विच्येथी लेतां, भुंइ सिंहासन करि देतां; राणी हसति हसति जुए हेतुं, राजाए कौतुक दीढुं ॥ पनोता० गुरु० ॥ १२ ॥ लोक सघलां
For Pitvate And Personal Use Only
स्तवनम्