Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीसंवत्सरी
शां. १६
www.kobatirth.org.
| शम कर्मने जपटे रे; ॥ श्री ॥ २२ ॥ केवललेइ शीवरमणी वशकरी, त्रीजग नायक उलसेरे; दान प्रभावे त्रिगडे बेसी, केवल कमला वासे रे ॥ श्री ॥ २३ ॥ दान देवानी विधी ए भाखी, सयल तीर्थंकर केरी रे; वीयसार जे ग्रंथ मोझारे, जो जो ए शीक्षा भलेरीरे ॥ श्री ॥ २४ ॥ एणीपेरे भवीया तमेपण निसुणी, देजो दान अभंगा रे; आभव परभव सुख अनंता, उलटे ज्यां गंग तरंगारे ॥ श्री ॥ २५ ॥ एवी दान शक्ति मुज सदा, भव भव उदयेते आवेरे; पंडित केसर अमरनो किंकर, लब्धी वंछीत पावेरे ॥ श्री ॥ २६ ॥
" इति श्री पंडित केसरअमर शिष्य लब्धी विजय विरचित श्री संवत्सरीदान स्तवनम् सम्पूर्णम्”
"अथ श्री आदीश्वर भगवाननां तेर भवनुं स्तवनम्"
दुहा - पुरिसा दाणी पासजिन, बहुगुणमणी आगार, ऋद्धि वृद्धि मंगल करण, प्रणमुं मन
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Pitvate And Personal Use Only
दाननुं
स्तवन.