Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis
सीमंधर - स्वामी
www.kobahrth.org.
जी रे, जीव तुं माखीने तोल; सरिखा सरखा विना क्युं बाजे गोठडी रे, जीवतुं ह्रदय विचारी बोल ॥ जिनजी० भोला० प्राणी० ॥ ४ ॥ जीवतुं कर्म लगे लपटाणो ज्यां लगे रे, त्यां लगे तुज नहीं कास; समतानो गुण ज्यारे तुजमें आवश्ये रे, त्यारे जाइश जिनजी पास ॥ जिनजी० भोला० प्राणी० ॥ ५ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ढाल – ७ मी ॥ राग धन्याश्री ॥ श्री मंधर स्वामी तणी गुणमाला, जे नर भावे भणश्ये; तस शिर वैरी कोइ न व्यापे, कर्म शत्रुने हणश्ये रे ॥ हमच्छरी ॥ १ ॥ श्रीमंधर स्वामी तणी गुणमाला, जे नांरी नित्य गुणश्ये; सतीरे सोहागण पिहर पसरी, पुत्र सुलक्षणा जणश्ये रे ॥ हमच्छरी ॥ २ ॥ श्रीमं धर स्वामी शिवगति गामी, कविता कहे शिरनामी; वंदणा मारी ह्रदयमां धारी, धर्मलाभ द्योस्वा मी रे ॥ हमच्छरी ॥ ३ ॥ श्री तपगच्छ नायक सुंदर, श्री विजयदेव पट्टोधारी; जस कीर्त्ति जेहनि जंगमाही झाझी, बोले नरने नारी रे ॥ हमच्छरी ॥ ४॥ श्री गुरु वाणी सुणी बुध सारु, श्रीमंधर जिन में गाया; संतोषी कहे देवगुरु धर्मे, पूर्व पुण्ये पाया रे ॥ हमच्छरी ॥ ५ ॥ "इति श्री सीमन्धर स्वामी स्तवनम् सम्पूर्णम्"
For Private And Personal Use Only
स्तवनम्