Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shaha
na Kendre
Acharya Sh Kasagar
Gyanmandie
-
RIEREKA TERA
निश्चे ते गणधाररे ॥ सूण ॥ १४ ॥ दुर्गति मांहे नारकी, दश हजार प्रमाणरे; नरकनोग आयु क्षण एकमे, साढपोरिसी करे हाणिरे ॥ सूण०॥ १५॥ पूरिमट्ठ करतां जीवडा, नरके ते नहीजाय रे; लाख वर्ष कर्म निकंदे, पूरिमट्ठ करता खपायरे ॥ सूण ॥ १६ ॥ लाख वर्ष दस नारकी, पामे दुःख अनंतरे; तेटलां कर्म एकासगुं, दूर करे मन खंतरे ॥ सूण॥ १७॥ एक कोडि वर्षा लगे, कर्म खपावे जीवरे; नीवी करतां भावश्युं, दुर्गति हणे सदैवरे ॥ सूण० ॥ १८ ॥ दश | कोडि जीव नरकमें, जेटलो करे कर्म दूररे; तेटलो एकल ठाणेकरी, करे सहि चक चूररे॥सूण०॥१९॥
दाति करतां प्राणीयां, सोकोडि प्रमाणरे; एटलां वर्ष दुर्गति तणां, छेदे चतुर सूजाणरे ॥ सूण है॥२०॥ आंबिलनो फल वह कह्यो, कोडि दश हजार रे; कर्म खपावे एणि परे, भावे आंबिल
अधिकाररे ॥ सूण ॥ २१ ॥ कोडि हजार दश वर्ष सही, दुःख सहे नरक मोझाररे; उपवास करे इक भावश्यु, पामे मुक्ति द्वाररे ॥ सूण० ॥ २२ ॥
ढाल ३-॥जी॥ केइक वर मांगे सिता भणी चोपें ॥ ए देशी ॥ लाख कोडि वर्षा लगे,
For Prve And Personal use only