Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis
www.kobarth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रे सोभागीलाल; ॥ महा पुरुषनी देशना रे लोल, ते नवि होवे फोक रे सोभागीलाल; नेमीश्वरः ॥४०॥ कार्त्तिक शुदि जे पंचमी रे लोल०, सौभाग्य पंचमी नाम रे सोभागीलाल; ॥ सौभाग्य लहीए एहथी रे | लोल०, सघले बहु सुख धाम रे सोभागीलाल; नेमीश्वरः ॥४१॥ समुद्रविजय कुल सेहरो रे लोल०, ब्रह्मचारी शिरदार रे सोभागोलाल; ॥ मोहनगारी मानिनी रे लोल०, रुडीराजुल नारीरे सोभागीलाल; नेमीश्वरः ॥ ४२ ॥ ते नवि परणी सुंदरी रे लोल, पण राख्यो जेणे रंगरे सोभागीलाल; मुक्ति मोहोलमां बेहु मिल्या रे लोल, अविचल जोडी अभंग रे सोभागीलाल; नेमीश्वरः ॥ ४३ ॥ तेणे ए माहात्म्य भाखी उंरे लोल०, पंचमीनुं परगट रे सोभागीलाल; ॥ जे सांभलतां भावशुं रे लोल०, श्रीसंघने गह गहरे सोभागीलाल, नेमीश्वरः ॥ ४४ ॥ कलश – इम प्रणत सुरनर सयल दुःखहर गाइयो नेमीश्वरूं, तपगच्छ राजा वड दिवाजा विजयाणंद सूरीश्वरुं; तस चरण पद्म राग मधुकर गोविंद कुमर विजय तणो, तस शिष्य पंचमी स्तवन भणतां गुणविजय रंगे थुण्यो ॥ १ ॥
॥ " इति श्री ज्ञान पञ्चमि स्तवनम् संपूर्णम्” ॥
For Pitvate And Personal Use Only