Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
ShiMahayeJainrachanaKendra
www.kobathrtm.org
Achat na
m ed
A
AALAADARSEX
पूर्व अनुयोग तिहां नहीं रे, सूक्षम महा प्रणिधान; पहिलं संघयण थाकीउं रे, वली पहिलं संस्था नो रे, गौतम सांभलो ॥३५॥ बसे विस वरस वली रे, निन्हव चोथो रे जेह; अश्वमित्रज नाम हश्यें रे, पाछो वलस्य नर तेहो रे गौ०॥ ३६॥ वीर पछी वरसज जश्ये रे, बिसें ने अठ्ठावीश;| तव निन्हव हशें पांचमो रे, धनगुप्तनो शीशो रे गौ०॥ ३७॥ ___ दूहा-गंगा चारज ने सही, ते तिम आणो ठाय; च्यार सयाने सित्य रे, विरथी विक्रम राय गौ० ॥ ३८॥ जे निज शक थापशे, पर दुःख भंजन हार; जैन शीरोमणि तेहछे, शूरवीर दातार ॥ ३९ ॥ पाट कुसुम जिन पूज परुपी ॥ ए देशी ॥ ढाल ॥ ६॥ वीर कहें वरस मुजथी जाशे, ॥४०॥ पंचसियां चिहुं आल; रोह गुप्त निन्हव होय छट्टे, भमश्ये ते बहु काल हो गौतम दिन दिन कुमति वधशे ॥ भुपति नहि कोय संयम धारी, दान पचारी देशे हो गौ०॥४१॥ ए आंकणी॥ पंचसया चउराशी वरसें, होशे गोष्टि माहिली; सप्तम निह्मव तेहनें कहिए, चाले भुंडी चाल हो गौ०॥४२॥ पंचसया चौराशी गौतम, वरस गयां तुं जोय; दशपूर्व थाकशे त्यारे, वयरस्वामि
-%A5
For Pale And Personal use only