Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
SM Mahavam
A
kende
www.kobatirth.org
Achan Kailas
Gyamandi
शांतिनाथना.
बिंब हो जपतां जयकारकें-प्रा०॥ ३॥ चोथें माहेंद्र देवलोकें, आठ लाख हो प्रासाद जगदीश लाख च्यालीश मूरती, कोडी चउद हो नमिए निशदिश-प्रा०॥४॥ पांचमें ब्रह्म देवलोकें, च्यार स्तवन, लाख हो प्रासाद में सारकें; तिहां सात कोडि सोहतां, वीश लाख हो जिन बिंब उदारकें-प्रा०॥५॥ सहस पंचाश प्रासाद छे, छठे स्वर्गे हो लांतक मोझारकें; तिहां ने, लाख निर्मलां, जिन बिंब हो आपें भव पारकें-प्रा०॥ ६॥ सातमें शुक्र देवलोकें, सहस च्यालीश हो प्रासाद विशालकें; बहोतेर लाख जिंन बिंब छ, पूजी प्रणमी हो थाय देव खुसालकें-प्रा०॥७॥ आठमें सहस्रार देवलोकें, जिन मंदिर हो छ सहस प्रमाणकें०, दश लाख ऐसी सहस, जिन मंदिर हो तिहां गुण खांणके-प्रा० ॥८॥ नवमें आनत देवलोकें, बसें देहरा हो बिंब छत्रीश हजार के दशमें प्राणत देवलोकें, एहज पाठ हो जाणो निरधारकें-प्रा०॥९॥ आरण इग्यारमें देवलोकें, अच्युत स्वर्गे हो जांणो अविशेषकें; दोढसो दोढसो प्रासाद, जिन बिंबहो सत्तावीश सहसकें-प्रा०॥ १०॥ हेठले त्रण ग्रैवेयकें,
४॥३६॥ शत एकहो प्रासाद इग्यार; तेर सहसनें त्रणसें, वीश बिंब हो जिननां मनोहारकें-प्रा०
For Pale And Personal use only