Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 13
________________ [८] वीर पुरुष भी थे। एक बार जब आप चित्राहाट से रात्रि के समय लौट रहे थे उस समय आपके साथ आपके भतीजे लाला अयोध्याप्रसाद जी व लाला ख्यालीराम जी ही थे। आप पर अकस्मात १५-२० लुटेरों ने मार्ग में आक्रमण किया। आपने उस समय डटकर बदमाशों का सामना किया और अपनो व अपने माल की रक्षा की। इसके अतिरिक्त आप सर्वदा निःसहाय और दुखियों की सहायता करते रहते थे। __आप अन्त समय तक पूर्ण स्वस्थ रहे और मृत्यु के पहिले तक पूजादि सब नित्यकर्म नियमपूर्वक करते रहे। इतना ही नहीं, श्राप दूकान के काम में भी पूर्ण सहयोग देते रहे। आप केवल ६ दिन साधारण रोगग्रस्त रहकर और अन्त समय १०००) दान देकर कार्तिक सु०७ सं० १६६६ को समाधिमरणपूर्वक इस असार संसार को छोड़कर स्वर्गवासी हुए। आपके निधन से केवल कचौरा ग्रामवासियों को ही धक्का नहीं लगा, किन्तु यहां के आस पास के बीसियों ग्रामों को एक जबर्दस्त ठेस पहुंची । मनुष्य कर्तव्यशील होकर किस प्रकार लौकिक और पारलौकिक उन्नति कर सकता है ? यह शिक्षा आपके जीवन से भलीभांति मिल जाती है। -( कुवर ) महावीरसिंह, सेनेटरी इन्सपेक्टर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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