Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 57
________________ जैन-धर्म [५२ ] हिंसा के भेदसंसार में हिंसा चार प्रकार की होती है—(१) संकल्पी, (२) आरम्भी, (३) उद्योगी, (४) विरोधी। (१) संकल्पी हिंसा वह है जो इरादे से की जाती हैजैसे किसी को जान बूझ कर सताना, देवी देवताओं को प्रसन्न करने अथवा अपना अभीष्ट सिद्ध करने के लिये जीवों को मार कर बलि चढ़ाना, मांस खाने की लालुपता से प्राणियों का बध करना, द्वेषवश किसी पर आक्रमण करना, मनोरञ्जन के लिये शिकार खेलना, आदि। इन कार्यों को स्वयं न करके दूसरों से करवाना या किसी को करते हुए देख कर खुश होना भी संकल्पी हिंसा है। (२) आरम्भी हिंसा वह है जो घर गृहस्थी के कार्यों में प्राणियों का घात हुआ करता है- जैसे चक्की पीसना, झाडू. देना, मकान बनवाना, आग जलाना आदि कार्यों में सावधानी रखते हुए भी थोड़े बहुत जीव मर ही जाते हैं। " (३) उद्योगी हिंसा वह है जो खेती, व्यापार करने, कलकारखाने चलाने आदि जीविका सम्बन्धी कार्यों में होती है। (४) विरोधी हिंसा वह है जो दुष्टों और आततायियों से अपनी जान, माल, कुटुम्ब, आश्रित, देश और धर्म की रक्षा करने में होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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