________________
जैन दर्शन तथा अन्य दर्शनों के दृष्टिकोण
मौलिक अन्तर
वस्तु तत्व की यथार्थता की ठीक २ शोध या खोज को दर्शन कहते हैं तथा जगत् और उसके पदार्थों की विवेचना करना ही दर्शन का कार्य है। विश्व के समस्त दर्शनों से जैनदर्शन के तत्व-विचार करने की प्रणाली सर्वथा भिन्न, मौलिक और महत्व पूर्ण है। संसार के सम्पूर्ण दार्शनिक जहां वस्तुओं और जगत के सम्बन्ध में सर्वथा एक दृष्टि से ही विचार करना चाहते हैं और अपने उस एक दृष्टिकोण के द्वारा देखे या जाने गये वस्तु के एक अंश को ही पूर्ण वस्तु समझना व समझाना चाहते हैं एवं अपने से भिन्न दृष्टिकोण द्वारा देखे गये वस्तु तत्व को जो कि दूसरी दृष्टि से यथार्थ है, मिथ्या कह कर वस्तु स्वरूप की पूर्णता का
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com