Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 111
________________ जैन-धर्म [ १०६ ] अर्थात् भागवत पुराण में स्वीकार किया गया है कि जैनधर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे। भागवत के अतिरिक्त विष्णु पुराण, वायु पुराण, लिङ्ग पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, आदि में भी भगवान ऋषभदेव और उनके पिता आदि का वर्णन है जो जैन पुराणों से मिलता है। जर्मनी के सुप्रसिद्ध विद्वान डा. जैकोबी लिखते हैं “There is nothing to prove that Parshva was the founder of Jainisin. Jain tradition is unanimous in making Rishabha the first Tirthanker ( as its founder ) there may be something historical in the tradition which makes him the first Tirthanker. अर्थात-पार्श्वनाथ को जैनधर्म का संस्थापक सिद्ध करने के लिए प्रमाण का अभाव है। जैन मान्यता ऋषभ देव को अविरोध जैनधर्म का संस्थापक स्वीकार करती है । जैनियों की इस मान्यता में ऐतिहासिक सत्य की सम्भावना है। इस सम्बन्ध में श्री वरदाकान्त मुख्योपाध्याय M. A. प्रसिद्ध बङ्ग विद्वान् लिखते हैं "लोगों का यह भ्रमपूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक थे; किन्तु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेव ने किया था, इसकी पुष्टि में प्रमाणों का अभाव नहीं है।" आगे चलकर यही विद्वान् प्रमाणों को उपस्थित करते हुए लिखते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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