Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 112
________________ जैन-धर्म [ १०७ ] १-बौद्ध लोग महावीर को निग्रन्थ अर्थात् जैनियों का नायक मात्र कहते हैं, स्थापक नहीं कहते। _२-जर्मन डाक्टर जैकोबी भी इसी मत से सहमत हैं। (इनका मत ऊपर दिया जा चुका है)। ३-हिन्दू शास्त्रों और जैन शास्त्रों का भी इस विषय में एक मत है। भागवत के पांचवें स्कन्ध के अध्याय २-६ में ऋषभदेव का कथन है, जिसका भावार्थ यह है चौदह मनुओं में से पहिले मनु स्वयंभू के पौत्र नाभि का पुत्र ऋषभदेव हुआ, जो दिगम्बर जैन संप्रदाय का आदि प्रचारक था। इनके जन्मकाल में जगत् की बाल्यावस्था थी, इत्यादि। ४-डाक्टर फुहरर ने जो मथुरा के शिला लेखों से समस्त इतिवृत्त का खोज किया है उसके पढ़ने से जाना जाता है कि पूर्वकाल में जैनी ऋषभदेव की मूर्तियां बनाते थे। ये शिलालेख कनिष्क, हुवष्क आदि राजाओं के राजत्वकाल में आज से दो हजार वर्ष पहिले खोदे गये हैं। ५-शङ्कराचार्य महाराज स्वयं स्वीकार करते हैं कि जैन धर्म अति प्राचीनकाल से है । वे 'वादरायण' व्यास के वेदांत सूत्र के भाष्य में कहते हैं कि दूसरे अध्याय के द्वितीय पाद के सूत्र ३३-३६ जैनधर्म ही के सम्बन्ध में हैं। ६-शारीरिक मीमान्सा के भाष्यकार रामानुज जी का भी यही मत है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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