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जैन-धर्म
[ १०५] जो लोग जैनधर्म के वर्तमान कालीन २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर या २३वें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ को ही जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं आशा है उनका भ्रम उपर्युक्त प्रमाणों से दूर हो जायेगा। इसके अतिरिक्त जिन अन्य प्रमाणों द्वारा जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है उनमें से हिन्दू धर्म का पुराण साहित्य भी मुख्य है। भागवत पुराण में स्पष्टतया भगवान ऋषभदेव को, जिनका समय जैन शास्त्रानुसार अब से असंख्यात वर्ष पूर्व और इतिहास की आधुनिक खोज के बाहर है, जैनधर्म का प्रवर्तक लिखा है। पाठकों को सुविधा के लिए भागवत के हिन्दी भाष्य को नीचे उद्धृ त किया जाता है
"ऋषभ अवतार कहे हैं कि ईश्वर अगनीन्द्र के पुत्र नाभि से सुदेवी पुत्र ऋषभदेव जी भये । समान दृष्टा जड़ की नाई योगाभ्यास करते भये, जिनके परमहंस्य पद को (दिगम्बरता को) ऋषियों ने नमस्कार कोनो, स्वस्थ, शांत इन्द्रिय सब संघ त्यागे ऋषभदेव जी भये जिनसे जैनधर्म प्रकट भयो।'
-भागवतपुराण २-७-६-१० ज्वालाप्रसाद भाष्य । भागवत के अध्ययन के पश्चात् विश्वविख्यात् दार्शनिक विद्वान सर राधाकृष्ण ने अपने 'इण्डियन फिलासफी' नामक ग्रन्थ में लिखा है
The Bhagwat Puran endorses the view that Rishabh was the founder of Jainism.»
-Indian Philosophy. 287
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