Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 114
________________ जैन-धर्म [१६] बड़ौदा में जो भाषण दिया था उसमें आपने स्पष्टतया स्वीकार किया था कि “ग्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है कि जैनधर्म अनादि है। यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है। सुतरां इस विषय में इतिहास के दृढ़ सबूत हैं।" आगे चलकर आप फर्माते हैं “गौतमबुद्ध महावीर स्वामी (जैन तीर्थकर ) का शिष्य था, जिससे स्पष्ट जाना जाता है कि बौद्ध धर्म की स्थापना के पूर्व जैन धर्म का प्रकाश फैल रहा था। चौबीस तीर्थङ्करों में महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थङ्कर थे इससे भी जैनधर्म की प्राचीनता जानी जाती है । बौद्ध धर्म पीछे से हुआ यह बात निश्चित है। बौद्ध धर्म के तत्व जैन धर्म के तत्वों के अनुकरण हैं।" तिलक महाराज के उपर्युक्त कथन से जो लोग जैन धर्म को बौद्ध धर्म की शाखा या उससे उत्पन्न हुआ मानते हैं, आशा है उनका भ्रम भी दूर हो हो जायगा। आपने यह भी फरमाया था कि 'अहिंसा परमो धर्मः' के उदार सिद्धान्त की चिरस्मरणीय छाप जैन धर्म ने ही ब्राह्मण धर्म पर मारी है । भारत में यज्ञों द्वारा जो असंख्य पशुहिंसा धर्म के नाम पर की जाती थी उसको सदा के लिये विदा कर देने का श्रेय भी जैन धर्म के हिस्से में है। ब्राह्मण और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरापान बन्द हो गया, यह भी जैन धर्म का प्रताप है ब्राह्मण धर्म जैन धर्म से मिलता हुआ है इस कारण टिक रहा है, आदि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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