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जैन-धर्म
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धर्म विचार, धर्मनीति, परमात्म तत्व आदि सभी बातें विशद रूप में विद्यमान हैं । जैनदर्शन प्राचीन काल के तत्वानुशीलन का सचमुच एक अनमोल फल है, क्योंकि जैनदर्शन को यदि छोड़ दिया जाय तो सारे भारतीय दर्शनों की आलोचना अधूरी रह जायगी यह अकाट्य सत्य है ।”
उपर्युक्त सम्पूर्ण प्रमाणों तथा अजैन विद्वानों की गवेषणात्मक निष्पक्ष सम्मतियों से सिद्ध है कि जैनधर्म दुनियां के सम्पूर्ण धर्मों से स्वतन्त्र, समीचीन एवं प्राचीन होने का पूरा पूरा दावा रखता है। जैन शास्त्रानुसार यह धर्म परंपरा रूप में अनादि अनंत है और इस युग की दृष्टि से देखा जाय तो वह कर्मभूमि के प्रारंभ में भगवान् ऋषभदेव के द्वारा आज से संख्यात् वर्ष पूर्व प्रचलित हुआ था । भगवान् ऋषभदेव इस में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ( धर्म प्रवर्तक या गुरु ) थे। इनके हजारों लाखों वर्षों के बाद दूसरे और इसी प्रकार तीसरे चौथे आदि चौबीस तक तीर्थंकर होते रहे व स्वपर कल्याण कर मुक्ति-लाभ करते रहे । २४वें अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर हुए जिनके द्वारा उपदिष्ट यह धर्म संसार में इस समय विद्य मान है ।
युग
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इति
जैनं जयतु शासनम्
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