Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ प्रिय महोदय ! आपने इस पुस्तक का ध्यानपूर्वक पढ़ा है, आशा है आपको यह पसन्द आई होगी और आपने ऐसी पुस्तकों द्वारा प्रत्येक जैन व अजैन बन्धुओं तक जैनधर्म के पवित्र संदेश को आज के बर्बरता पूर्ण युग में पहुंचाने की आवश्यकता अनुभव की होगी। अब इस पुस्तक का दूसरा संस्करण “एक लाख" की विशाल संख्या में प्रकाशित करने का निश्चय किया गया है / यह संस्करण केवल बिना मूल्य वितरण करने के लिये होगा / इसलिये कृपया आप अपनी या अपनी संस्थाओं की ओर से अधिक से अधिक जितनी भी प्रतियां लेकर वितरण करना चाहें 25 जनवरी सन 1641 तक उनकी स्वीकारता निम्न पते पर निम्न प्रकार होगा 100000 का 10000 का 1000 का 100 का 10001) रु० 1001) रु० 125) रु० 15) रु० क्या ही अच्छा हो यदि कोई एक ही उदार सज्जन अपनी श्रोर से एक लाख प्रतियां छपवा कर वितरण करा दें ! याद रखिये, धर्म प्रभावना का इससे अच्छा अन्य कोई कार्य नहीं से सकता! नाथूराम डोंगरीय जैन, जैन शिक्षा-मन्दिर बिजनौर, (यू० पी०) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122