Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 108
________________ जैन-धर्म [ १०३ ] ऋषभं मा समासानां सपत्नानां विषासहितम् । हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपितं गवाम् ।। -ऋग्वेद इस मंत्र में ऋषभ को देवता मानकर उनकी स्तुति की गई है और ये ऋषभ जैनियों के प्रथम तीर्थकर हैं। .. “ॐ सुपार्श्वमिन्द्र हवे" -यजुर्वेद इसमें 9 वें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ जी का नामोल्लेख करके उन्हें आहुति दी गई है। इसी प्रकार २२ वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी की स्तुति व पूजा सूचक भी कई मंत्र हैंवाजस्य नु प्रसवऽआवभूवे मा च विश्वा भुवनानि सर्वतः स नेमि राजा परियाति विद्वान् जां पुष्टि वर्द्धयमानो अस्मै स्वाहा। (यजुर्वेद अ० ६ मंत्र २५) - इस मंत्र में नेमिनाथ जी की स्तुति करते हुए उन्हें आहुति प्रदान की गई है। स्वस्ति न इन्द्रोवृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्व वेदाः। स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्ट नेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। इस मंत्र में इन्द्र, पूषा, अरिष्ट नेमि व बृहस्पति से मंगलकामना की गई है। वेदों के सिवाय भारत के पाणिनि आदि वैयाकरणों से भी बहुत प्राचीन वैयाकरण शाकटायन ने, जिनका समय आज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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