Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 102
________________ जैन-धर्म [१७] आदि में जो ईश्वर ने मनुष्यादि प्राणियों को उत्पन्न किया था उनका शरीर किस पूर्व जन्म के कर्म का फल था ? यदि कहा जाय कि प्रलय के पूर्व की सृष्टि का, तो प्रलय किस लिए किया गया ? प्रलय इसलिए किया गया माना जाता है कि दुनियां में जब पाप बहुत बढ़ जाते हैं और पापिष्ट एवं दुष्ट आत्माओं को सब सजाओं से बड़ी सजा ईश्वर देता है तो वह उनका नाश कर डालता है यानी प्रलय कर देता है। इस भांति प्रलय कर देने पर सब प्राणियों को उनकी दुष्टता का फल मिल गया। अब उनके और कौन से कर्म शेष रह गये, जिनका फल फिर से शरीर प्रदान कर ईश्वर भोगवाना चाहता है ? तथा दुष्टों के निग्रह के लिये प्रलय करने से तो दुष्टों को पैदा न करना ही अच्छा था। इस सबके अतिरिक्त दुष्टों का निग्रह और सजनों का पालन बिना राग, द्वष के नहीं हो सकता, जिनके करने से ईश्वर को भी उनका फल भोगने का प्रसङ्ग आवेगा । फिर जब कि कोई पदार्थ बिना कर्ता के यदि पैदा नहीं होता तो ईश्वर भी एक पदार्थ है, उसे किसने पैदा किया ? यदि कहो कि वह स्वयं सिद्ध है तो यह चराचर जगत और उसके पदार्थ भी अनादि निधन स्वयं सिद्ध हैं, यही क्यों न मान लिया जाय ? कहां तक कहें, ईश्वर के जगत्कर्ता और कर्मफलदाता स्वीकार करने में अनेक बाधाएँ और दोष आते हैं, एवं 'जगत्कर्ता ईश्वर हैं' इस बात का साधक-सिवाय कल्पना के, कोई प्रमाण भी नहीं है । अत एव परमात्मा का ज्ञाता, दृष्टा, सञ्चिदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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