Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 96
________________ जैन-धर्म [११] जैनधर्म और ईश्वरवाद moom यद्यपि जैनधर्म ने परमात्मतत्व, अध्यात्मवाद, परलोकवाद, आदि सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर उनकी जो वैज्ञानिक और विशद रूप में व्याख्या की है वह संसार के सम्पूर्ण दर्शनों में बेजोड़ है और इसीलिये यह एक आस्तिक दर्शन है ; तौ भी कुछ लोग इस पर “नास्तिकता" का आरोप लगाते रहते हैं और न जाने कब से लगाते आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वे जैनदर्शन का अकर्तृत्व वाद अर्थात् ईश्वर को जगतकर्ता न मानना ही बतलाते हैं। इसलिए जैनदर्शन, ईश्वर को सृष्टिकर्ता क्यों नहीं मानता, इस सम्बन्ध में पाठकों की जानकारी के लिए यहां पर तर्क व प्रमाण संगत थोड़े से विचार उपस्थित किये जाते हैं । जैनदर्शन कहता है कि ईश्वर को जगत्कर्ता मानने में सिवाय कल्पना के कोई भी प्रमाण नहीं है कि जिस के बल पर उसे सृष्टिकर्ता माना जा सके, उल्टे पदार्थों के स्वभाव और उनकी परम्पराएँ यह सिद्ध करती हैं कि यह सब कुछ अनादि अनन्त है, अलबत्ता पदार्थों की अवस्थाओं में कभी समान और कभी असमान परिवर्तन होते रहते हैं ; किन्तु यह कभी भी सम्भव नहीं हो सकता कि सब पदार्थ कभी समूल नष्ट हो जायें या कभी बिना अपने उपादान कारण के पैदा हो जायें । यदि ईश्वर का ही सबका उपादान स्वीकार किया जायेगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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