Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 66
________________ जैन-धर्म [ १] शिरोमणि सम्राट चन्द्रगुप्त , धर्मवीर सम्राट एलखारवेल , वीर शिरोमणि चामुण्ड राय , और प्रतापी भामाशाह जैसे नररत्नों को ही ले लीजिये कि जिन्है। ने गृहस्थ के योग्य अहिंसा धर्म का पालन करते हुए भी आततायियों से अपने देश, धर्म, समाज आदि की रक्षा करने में कभी भी कायरता से काम नहीं लिया। जो लोग अहिसा को भारत की पराधीनता का कारण कहते हैं उन्हें चाहिये कि वे ज़रा भारत के पराधीनता सम्बन्धी इतिहास के अवलोकन का कष्ट स्वीकार करें जिससे उन्हें मालूम हो जायेगा कि जिस समय भारत पराधीन बना है उस समय ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी से ले कर पन्द्रहवीं शताब्दी तक भारतीय नरेशों ने लगातार विदेशी आक्रमणकारियों का बीरता के साथ मुकाबिला किया और उन्हें पराजित करते हुए देश की पूर्ण रूप से रक्षा की ; किन्तु अन्त में राउगों को आपसो फूट, स्वार्थपरता, व विखरी शक्ति के कारण ही भारत पराधीन बना । अस्तु, ( सच तो यह है कि यदि गृहस्थ राज्यादि कार्यों को करते हुए अथवा गृहस्थी की जिम्मेदारी का भार सम्भालते हुए विरोधी हिंसा का बिल्कुल त्याग कर दें तो दुनियां में अधेर मच जाये-आततायी लोग लूट, मार, हत्या, व्यभिचार, बलात्कार, अत्याचार आदि करने में निःशङ्क हो कमर कस कर जुट जायें और किसी भी गृहस्थ का धर्म, जान, माल; देश आदि खतरे से खाली न रहे । इस लिये गृहस्थों से अहिंसा का एक देश पालन ही हो सकता है और वही पालन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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