Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 78
________________ जैन-धर्म [७३] साम्राज्य और धन दौलत की आसुरी लालसा ने आज तक न जाने कितने मनुष्यों का जीवन बर्बाद कर डाला और उनके द्वारा न जाने कितने निर्दोष तथा शांत प्राणियोंके धन, जन व सर्वस्व को नष्ट भ्रष्ट करवा डाला ! साम्राज्यशाही का आजकल जो दुनियां के अन्दर नग्न तांडव हो रहा है और तोपों, बन्दूकों, वमों, मशीनगनों, टेकों आदि के ज़ोर से साम्राज्यवादी जिस निर्दयता और पाशविकता का हृदयहीन प्रदर्शन करते हुए असंख्य निरीह जनता पर राक्षसों की भांति टूट कर निर्मम हत्यायें करके अपनी आसुरी वासनाओं का तृप्त करने की कोशिश कर रहे हैं; तथा पहिले भी करते रहे हैं, वह सब परिग्रह नामक महापाप का ही दुष्परिणाम नहीं तो और क्या है ? इसी प्रकार एक काकी धनवान व्यक्ति, जो असंख्य ग़रीबों पर अत्याचार करता हुआ इतराता और उससे भी अधिक धन संग्रह करने की लालसा में अत्यन्त कठोर और हृदयहीन बन जाता है, वह सब भी इस परिग्रह रूप शैतान की करामात का ही निर्लज्ज प्रदर्शन है। रूस के उद्धारक मौशिये लेनिन ने राजा और प्रजा, धनवान और निर्धन का भेद मिटाने के लिए तथा सांसारिक विषमता, अशान्ति और संघर्षों को दूर करने के लिए जो 'साम्यवाद' नामक सुन्दर योजना का आविष्कार किया था; और दुनियां की धन सम्पत्ति व अनाज आदि की पैदायश पर सब का समान अधिकार स्वीकार करके सब को स्वतन्त्र रूप से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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