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जैन-धर्म
[५६ ] वे पुरुष वीर कहलाते हैं जो किसी आततायी के द्वारा सताये जाने पर प्रात्मरक्षा करने में पूर्ण समर्थ होते हैं और उसे वश कर उस पर विजय प्राप्त कर लेते है ; किन्तु जो प्रतीकार करने में पूर्ण समर्थ होते हुए भी दुश्मन की दुष्टता और मूर्खता का बदला लेने की अपेक्षा उसे हृदय से क्षमा कर देते हैं वे वास्तव में महावीर और सच्चे अहिंसक हैं। अपराधी को हृदय से क्षमा कर देना और उसका तनिक भी खयाल न लाना कितना कठिन और वीरता का कार्य है, इसे साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकते। ऐसी नासमझी से जो लोग उक्त प्रकार के महावीर पुरुषों को 'कायर' कहने का साहस करते हैं वे वीरता
और धर्म का ही अपमान करते हैं, जिसे प्रत्येक समझदार भलीभांति आसानी से समझ सकता है । यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति को क्षमाधारण कर महावीरता दिखाना चाहिये ; किंतु यदि वह ऐसा न कर सके तब कायरता छोड़ कर आत्म रक्षा कर वीरता तो दिखानी ही चाहिए।
कायर वे हैं जो बलवान शत्रु का प्रतीकार करने में स्वयं असमर्थ होने पर या सामर्थ्य होने पर भी साहस के अभाव में डर के मारे मुँह छिपा कर बैठ जाते हैं और मन ही मन तो उसे कोसते व द्वष करते रहते हैं, किन्तु ऊपरसे दिखावटी 'क्षमा क्षमा' का राग अलापते रहते हैं । यह कायरता है और इसमें व हिंसा में नाम मात्र का ही अन्तर है । यह कायरता उस विरोधी हिंसा से कहीं अधिक पापपूर्ण व निंद्य है, जिसका कि ऊपर वर्णन किया गया है और जो गृहस्य के लिये क्षम्य है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com