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बीसवीं सदी का यह युग कई बातों में अपनी विशेषता रखता है। एक ओर तो मनुष्य के ज्ञान और विज्ञान की परिधि बढ़कर उसे जीवन को निष्पक्ष भाव से पहिचानने की प्रेरणा कर रही है और दूसरी ओर विज्ञान की अजेयशक्ति, भौतिक वाद का सहारा पाकर मनुष्य को मनुष्य के प्रति विद्रोही बना रही है। कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति विकास की ओर उन्मुख है, और कभी ऐसा मालूम होता है कि मानव, सभ्यता और संस्कृति के प्रशस्त राजमार्ग को छोड़कर स्वार्थ की संकुचित पग-डंडियों पर पड़कर, पतन की ओर अग्रसर हो रहा है। कोई कहता है कि मनुष्य का भविष्य उज्ज्वल है, और कोई कहता है कि उसके जीवन का अन्धकार प्रति दिन गहरा होता जाता हैं।
___ असल बात यह है कि संसार आज मानवीय और दानवीय सभ्यता के सङ्गम पर खड़ा हुआ है। उसकी जिस भावना को अधिक प्रेरणा मिलेगी, संसार का आगामी रूप उसी के अनुकूल होगा।
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