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जैन-धर्म
[३१] है। ऐसे धर्म का तो जितने जल्द नाश हो जाय, प्राणियों के हित की दृष्टि से उतना ही अच्छा । सत्य और शांति के समर्थक प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वह ऐसी घृणित, विषाक्त और नीचतापूर्ण बातों को मानने से साहस पूर्वक तुरन्त इन्कार कर दे।
विश्व प्रेम और स्याद्वाद इन उपर्युक्त दो संदेशों की जिस जैनधर्म ने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रीति से दुनियां के अशांत और दुखो प्राणियों को बिना किसी भेदभाव के उनका हित करने के लिए घोषणा की है वह
जैन-धर्म क्या है ? __ इस प्रश्न का संक्षेप में उत्तर देना बड़ा कठिन है, क्योंकि इसके जिन विशाल, उदार और गम्भीर सिद्धान्तों की विषद व्याख्या जैनाचार्यों ने महान ग्रन्थरत्नों द्वारा प्रकट की है उसे देखते हुए यह प्रयास हँसी का पात्र हुए बिना नहीं रह सकता । फिर भी 'अमृत थोड़ा सा भी सुखकर होता है' इस उक्ति को सामने रखकर मोटी २ थोड़ी सी हितकर बातों का कथन कर देना पाठकों को अवश्य लाभकर होगा।
जिस महापुरुष ने राग, द्वेष, मोह, काम, क्रोध, मान आदि कर्म शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली हो और आत्मा को पूर्ण सुखी व अनन्त ज्ञान का भंडार बना लिया हो, उसे 'जिन' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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