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जैन-धर्म
[४०] की उदार नीति द्वारा वस्तु तत्व का यथार्थ विवेचन किया गया हो, जिसके सिद्धांतों या बातों का उनकी सत्यता के कारण कोई खंडन न कर सके, तथा जिसकी बातें प्रत्यक्ष या अनुमान आदि प्रमाणों से बाधित न हों, तथा जो पाप मार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर लगाने वाला हो, और सब जीवों का समान रूप से हितकारक हो।
और जिसमें इनमें से एक भी बात न पाई जावे तो समझो कि वह सच्चा शास्त्र नहीं है। इसी प्रकार
सच्चा धर्म
वह है, जैसा कि पहिले लिखा जा चुका है कि जो संसार के दुखों से छुड़ा कर जीवों को सच्चा सुख और शांति प्रदान करे और आत्मा को कर्म कलंक से पवित्र कर परमात्मा बना देने की सामर्थ्य रखता हो। इसके विपरीत कोई धर्म वास्तविक धर्म नहीं कहला सकता।
इस प्रकार देव, गुरु, धर्म आदि को उपरोक्त लक्षणों की कसौटी पर कस कर उनका श्रद्धान करने से ही मनुष्य सम्यक्ष्टि बन सकता है और उनके द्वारा बताये हुए आत्मा आदि तत्वों को ठीक २ कर आत्म कल्याण कर सकता है।
आत्म कल्याण के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा के बन्धन व उससे मुक्त होने के कारणों को जानना तथा आत्मा
आदि तत्वों को समझ कर उन पर अटल विश्वास करना भी परम आवश्यक है।
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