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जैन-धर्म
[३८] __ जैन आचार्यों का यह आदेश है कि प्रत्येक व्यक्ति को संसार में फैले हुए हर एक 'धर्म' नामक वस्तु पर या देवी, देवताओं, धर्म, शास्त्रों और गुरुओं पर अन्वे होकर विश्वास कभी न करना चाहिसे । जब हम पैसे को हांडी को भी ठोक बजा कर मोल लेते हैं तो जिस धर्म या देव,गुरु आदि के द्वारा हम संसार समुद्र से पार हो कर सच्चा सुख प्रात करना चाहते हैं, उसका अन्वे हो कर सहारा लेना, चाहे उससे हानि के बदले लाभ हो क्यों न हो, बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती। इस लिये प्रत्येक समझदार व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह सत्य की कसौटी पर धर्म से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु को कसे, और इसके बाद ही उस पर विश्वास करे । इसके परखने की कसौटी निम्न प्रकार है
सच्चा
देव
वही हो सकता है जो सर्वज्ञ (विश्व के सम्पूर्ण पदार्थों और उनको हालतों को स्पष्ट जानने वाला) वीतराग (निर्दोष ) और हितोपदेशी अर्थात् जो निःस्वार्थ होकर समस्त प्राणियों को उनके हित का सच्चा मार्ग दिखाता हो। इन गुणों से विशिष्ट चाहे कोई हो, वही सच्चा देव, साकार परमात्मा, अर्हत, जिनेन्द्र या तीर्थकर, भगवान , खुदा, God, विष्णु, शिव, ब्रह्म आदि कई नामों से पुकारा जा सकता है। ऐसे आदर्श देव के गुणों की उपासना, उसके नाम आदि का पक्षपात छोड़कर, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक करना ही आत्मोन्नति में सहायक हो सकती है, और
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