Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 34
________________ जैन-धर्म [ २ ] . जबर्दस्ती करना कदापि धर्म नहीं हो सकता। यदि तुम अपने विचारों के अनुकूल ही सब लोगों से धार्मिक क्रियाएँ करवाना चाहते हो तो अपने मान्य सिद्धांत का प्रेमपूर्वक प्रचार करो, इसमें यदि आंशिक सफलता भी मिल जाय तो उसे बहुत समझो; किन्तु जबर्दस्ती लड़ झगड़ कर अपने विचार दूसरों पर लादने का दुष्प्रयत्न कभी न करो, जो कि कभी सफल नहीं हो सकता । हो सकता है कि कोई जानबूझ कर या बिना जाने ग़लती कर रहा हो या उसने वस्तु के स्वरूप व अन्य बातों को ग़लत समझ रक्खा हो, तो भी उससे द्व ेष न कर यदि तुम से बन सके और तुम उसे समझाने का पात्र समझो तो उसे वास्तविकता समझा दो, वर्ना मध्यस्थ रहो और उसकी मूर्खता पर या ज्ञान की हीनता पर ॐ लाओ नहीं, बल्कि दया करो । असहिष्णु बन कर लड़ने झगड़ने की कोशिश कदापि मत करो। ऐसे समय पर शान्ति से काम लो और जहां तक हो सके दूसरों के विचार भिन्नता सम्बन्धी झगड़ों का, जो उनके पक्षपात और एकांतवाद की नीति पर डटे रहने के कारण पैदा होते हैं, स्याद्वाद के द्वारा वस्तु की खूबियों को दिखाते हुए उन्हें उनकी कमी समझा कर दूर करो तथा परस्पर में प्रेम के साथ वस्तु के स्वरूप पर विचार करो । इतने पर भी यदि कोई अपने मिथ्या विचारों पर ही पक्षपात के कारण डटे रहना चाहता है तो उसे डटे रहने दो; क्योंकि वह अपने स्वभाव, मूर्खता, या कमजोरी के कारण ऐसा करने के लिये विवश है, किन्तु तुम्हें उससे लड़ने या उसे मारने पीटने 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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