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प्राकथन
संसार किधर ?
आज मानव जीवन की प्रत्येक दिशा में भीषण अशांति का नग्न तांडव हो रहा है। चारों ओर पाप, पाखण्ड, अन्याय और अत्याचारों का ही शैतानी साम्राज्य छाया हुआ है । बलवान निर्बलों को, धनवान निर्धनों का, उच्च जाति नीच जातियों को, राजा-प्रजा को और भाई भाई को भी सता कर, धोखा देकर यहां तक कि उसका सर्वस्व हरण कर भी अपनी आसुरी लालसा को तृप्त करने में स्वार्थान्ध होकर जुटा हुआ है । न केवल सामाजिक अपितु राजनैतिक क्षेत्र में भी युद्ध जैसे निर्दयता पूर्ण कार्यों द्वारा नर-संहार का भयानक दृश्य उपस्थित होता रहता है, तथा साम्राज्य लोलुपी वर्ग दुनियां के छोटे और अस्त्र शस्त्र हीन देशों के लोगों की स्वतन्त्रता का अपहरण कर उनके धन, जन सर्वस्व को हड़पने पर तुले रहते हैं, जिनमें मनुष्य अपनी मानवता को कुचल कर एक खूख्वार जङ्गली पशु से भी भयङ्कर रूप में दिखाई देता, और मार काट, लूट-खसोट का बाजार गर्म कर विश्व शांति का गला घोंटता रहता है।
आत्मा क्या है, धर्म किसे कहते हैं, तत्व किस चिड़िया का नाम है, आत्म कल्याण कैसे हो सकता है, सच्चा सुख और
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