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जैन-धर्म
[२०] सताओ, और उनके प्राणों की रक्षा का यथाशक्ति ध्यान रक्खो। जब तक एक मनुष्य या प्राणी दूसरे मनुष्यों और प्राणियों को हृदय से प्यार नहीं करता और उनके दुख को अपने दुःख के समान अनुभव नहीं करता, बल्कि उनको सताता रहता है व उनके सुख की कुछ भी परवाह नहीं करता तब तक संसार में शान्ति का होना कठिन ही नहीं, असंभव है। क्योंकि जब तुम दूसरों को स्वार्थवश सताओगे और उनके सुख में बाधा डालोगे तो यह स्वाभाविक है कि वे इसका बदला तुम्हें सता कर या तुम्हारे सुख साधनों को नष्ट भ्रष्ट करके लें । यह सोच कर मत इतराओ कि आज हम धनवान और बलवान हैं, कोई हमारा क्या कर सकता है ? क्योंकि बड़े २ अभिमानियों का घमंड, जो आस्मान से बातें करते थे; कभी न कभी मिट्टी में मिल चुका है। इसलिए इस तथ्य को समझ लो कि जिस धनादिक सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए और उससे सुखी बनने के लिए मनुष्य मदांध होकर पाप पुण्य की परवाह करना नहीं चाहता और उसके प्राप्त हो जाने पर इतराता व फूला नहीं समाता है; एवं सम्पत्तिहीन मनुष्यों को तुच्छ समझ कर उनका तिरस्कार करता और पैरों से रौंधने तक की कोशिश करने लगता है, वह सम्पत्ति स्थायी चीज़ नहीं है और न उससे आत्मा का कल्याण या सच्चे सुख की प्राप्ति ही हो सकती। बड़े २ चक्रवर्तियों ने जो एड़ी से चोटी तक महान परिश्रम कर अपने शानदार साम्राज्य स्थापित किये थे और असंख्य संपत्तियों
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