Book Title: Jain Dharm
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Nathuram Dongariya Jain

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Page 31
________________ जैन-धर्म [२६] आज भी कट्टर मुसलमान हिन्दुओं या ईसाइयों को अपना महान शत्रु सिर्फ इस लिए समझते हैं कि उनके विचार उनके मान्य कुरान शरीफ, खुदा और रीति रिवाजों के अनुकूल नहीं हैं। इसी तरह अनुदार हिन्दू-जैनियों, मुसलमानों या ईसाइयों को भी मतभेद होने से अपना पक्का शत्रु समझते और लड़ते झगड़ते रहते हैं । यद्यपि संसार के अधिकतर धर्म अपने २ शास्त्रों में मान्य एक ही ईश्वर, खुदा या God को सारी दुनियां का सृष्टा तथा उसका भाग्य-विधाता मानते हैं, और इस लिये उनके मतानुसार जिस परम पिता, खुदा या God ने हिन्दू को बनाया उसी ने मुसलमान या ईसाई को भी पैदा किया, यह बात सिद्ध होती है। फिर भी कट्टर मुसलमान हिन्दुओं की हस्ती मिटा देने और कट्टर हिन्दू मुसलमानों आदि को नेस्तोनाबूद कर देने की दिली ख्वाहिश ( इच्छा) रखता है, और अपने संकुचित व अनुदार दृष्टिकोण के द्वारा मजे में अपने ही मान्य धर्म शास्त्रों का गला घोंटता रहता है। "क्योंकि इसके विचार मेरे विचारों से भिन्न हैं" प्रायः यही सोच कर मानव समाज का अधिकांश भाग कभी २ एक दूसरे के प्राणों तक का अपहरण करने पर तुल जाता है। अकेले भारत में ही धर्म के पवित्र नाम पर लोग कितने भीषण दंगे कर डालते हैं ! इस मत भिन्नता से होने वाले भगड़ों और विरोध को दूर करने के लिये जैन धर्म कहता है कि अनादि काल से ही संसार में प्रत्येक प्राणी के विचार एक दूसरे से भिन्न रहे हैं, व Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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