________________
जैन-धर्म
[१८] की कोशिश कर रहे हैं, क्या उनका जीवन सुखी है ? कदापि नहीं। जो जितना चालाक, मक्कार, दगाबाज़, बेईमान, बदमाश, ऐशपरस्त और स्वार्थान्ध है वह उतना ही व्याकुल, अशांत, दुःखी, चिन्तित, पतित और कायर है। हो सकता कि कोई चालाको से दूसरों को धोखा देकर या पाप कर मन समझाने के लिये सुखी जैसा दिखाई देने लगे, किन्तु उसको अन्तरात्मा ऐसा करके निराकुल कदापि नहीं बन सकती, और उसका वह क्षणिक सुख भो चकनाचूर हुए बिना नहीं रह सकता। इसलिये संसार के प्राणियों में सब से समझदार बनने का दम भरने वाले
और इन्सान कहलाने का दावा रखने वाले मनुष्यो ! ज़रा अक्ल से काम लो, कलेजे पर हाथ रख कर ठंडे दिल से विचार करो कि दुनियां में तुम्हारा क्या फर्ज है ? तुम हो कौन ? सुख नामक वस्तु, जिसके लिए तुम इतने व्याकुल हो और शैतान से बाज़ी लगा कर अँधाधुन्ध पाप वासनाओं के जाल में फँस कर दूसरों का गला दबोचने में लगे हुए हो, कहां रहती है, कैसे मिल सकती है, और इन्सान व हैवान में क्या अन्तर है, तथा
तुम में इन्सानियत की कौन २ सी खूबियां हैं कि जिनसे तुम . इन्सान ही कहलाओ ? धन व आत्मा का और आत्मा व शरीर
का क्या सम्बन्ध है, तथा संसार में सुख व शान्ति कैसे कायम हो सकती है, और प्रत्येक प्राणी वास्तविक सुख को कैसे प्राप्त कर सकता है ?
यदि तुम स्वयं इन बातों को नहीं जानते, तो सुनो और अच्छी तरह समझ लो कि शैतान की भांति पाप और अत्याचार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com