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******** * संसार और मोक्ष का कारण
शुभाशुभामात्मकं कर्म, देहिनां भवधारिणाम्।। * भावे शुभाशुभे नष्टे, देहो नश्यति देहिनाम् ॥३॥ * अन्वयार्थ : * (शुभ) शुभ (अशुभात्मकम्) अशुभात्मक (कर्म) कर्म (भवधारिणाम्) * * संसारी (देहिनाम्) जीवों के होते हैं। (शुभ) शुभ (अशुभ अशुभ {भावे) * भाव (नष्टे) नष्ट होने पर (देहिनाम्) जीवों का (देहः) देह (नश्यति} नष्ट * होता है। * अर्थ : शुभाशुभात्मक कर्म शरीरधारक जीव संचय करते हैं। जो जीद * * शुभाशुभ भावों को नष्ट करते हैं, वे संसारी प्राणी शरीर का नाश करते है
हैं अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करते हैं। * भावार्थ : आचार्य श्री उमास्वामी लिखते हैं - शुभ पुण्यस्याशुभ: पापस्य।
(तत्त्वार्थसूत्र ६/३) अर्थात् : शुभयोग पुण्यात्रव और अशुभयोग पापास्त्रव का कारण है। शंका : शुभयोग क्या है ? समाधान : आचार्य श्री अकलंकदेव लिखते हैं -
अहिंसास्तेयब्रह्मचर्यादिः शुभः काययोगः। सत्यहितमितभाषणादिः शुभो वाग्योगः। अर्हदादिभक्तितपोरुचिश्रुतविनयादि शुभोमनोयोगः ।
(राजवार्तिक - ६/३/२) * अर्थात् : अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्यपालन आदि शुभ काययोग हैं।।
सत्य, हित-मित वचन बोलना आदि शुभ वचनयोग हैं।
अर्हन्त-भक्ति, तप की रुचि, श्रुत का विनय आदि विचार शुभ * मनोयोग है।
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