Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 79
________________ ******** * पुश ******** ध्यान का महत्त्व * नास्ति ध्यानसमो बन्धुर्नास्ति ध्यानसमो गुरुः। नास्ति ध्यानसमें मित्रं, नास्ति ध्यानसमं तपः॥ २५॥ * अन्वयार्थ : *(ध्यान) ध्यान के (समः) समान (बन्धुः) बन्धु (नास्ति) नहीं है। (ध्यान) ध्यान के (समः) समान (गुरुः) गुरु (नास्ति नहीं है। (ध्यान) ध्यान के (समम्) समान (मित्रम्) मित्र (नास्ति नहीं है। (ध्यान) ध्यान के (समम्) समान (तपः) तप (नास्ति नहीं है। * अर्थ : ध्यान के समान बन्धु, गुरु, मित्र और तप नहीं है। * भावार्थ : इस कारिका में ध्यान का महत्व प्रदर्शित किया जा रहा है। * * अ - ध्यान के समान पन्धु नहीं है - बन्धुजन सतत मनुष्य * का हित चाहते हैं। यदि इस दृष्टि से देखा जावे, तो समस्त बन्धुजन बन्धन के मूल हैं क्योंकि वे आत्मा के हित में बाधक हैं। ध्यान आत्मा । का सर्वतोमुखेन हित करता है। सच्चे बन्धु व्यक्ति के गुणों का पोषण * करते हैं और दोषों को दूर करने में सहयोग प्रदान करते हैं। बन्धुओं के * समान ही ध्यान भी दोषों का अपहरण और गुणों का वर्धन करता है।* * अतः ध्यान ही परम बन्धु है। - ध्यान के समान गुरु नहीं ह - गुरु शब्द की अनेक तरह से व्युत्पत्तियाँ होती है। *१. गृणातीतिः गुरुः - गुरु धातु निगरण यानि निकालने के अर्थ में है, * अतः जो अन्दर से कुछ निकाल देवे वह गुरु है। ध्यान ध्याता के मन * से सारे तामसिक भावों को निकाल देता है अतः वह गुरु है। * २. गुकारस्तमसि प्रोक्तो, रुकारस्तमिरोधकः - गुकार अन्धकार अर्थ में है और रुकार उसका निरोधक है। अर्थात् जो अन्धकार का निवर्तन करे वह गुरु है। ध्यान ज्ञानावरणीय कर्म के द्वारा उत्पन्न अन्धकार का * निवारण करता है अतः ध्यान गुरु है। *३. गुरु शब्द का लैटिन रूपान्तरण ग्रैविस है। इसीसे गुरुत्वाकर्षण शब्द * **********६९********** ※路路路路公路路路路路路路路路路杂杂杂杂杂热珍珠路路路路路路路路路路

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