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ज्ञानाकुशम्
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'पड़ेगा। नरक में जाना यदि तुम्हे इष्ट नहीं है, तो शीघ्र ही तुम परपदार्थों
को तज दो।
चिन्ता अनेकार्थक शब्द है । यथा
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दर्शनशास्त्र के अनुसार जहाँ-जहाँ साधन ह, वहाँ-वहाँ साध्य है । जहाँ-जहाँ साध्य नहीं, वहाँ-वहाँ साधन नहीं। इसप्रकार के व्याप्ति के ज्ञान को चिन्ता कहते हैं।
चिति चिन्तायाम् धातु से चिन्ता शब्द निष्पन्न हुआ है | विचार यह उस शब्द का अर्थ है।
तत्त्वार्थसूत्र में चिन्ता का अर्थ विकल्प है।
सूत्रकृतांग ग्रन्थानुसार चिन्ता का अर्थ पर्यालोचन हैं। मनोरोगों में कुविचार को चिन्ता कहा है।
स्मृति, धारणा, अध्यान या ध्यान के लिए भी चिन्ता कहते हैं। मणिविशेष या अश्वविशेष को भी चिन्ता शब्द प्रयुक्त होता है। यहाँ चिन्ता का अर्थ विचार या विकल्प अभीष्ट है।
जबतक चिन्ता से निवृत्ति नहीं होती, तबतक वह राग-द्वेष को उत्पन्न करती रहती है। राग-द्वेष कर्म को भेजा गया आमन्त्रण-पत्र है। इस में महान् कर्मास्रव है। आसव बन्ध का व बन्ध संसार का कारण है। जिससमय विकल्प नष्ट हो जाते हैं, उसीसमय परमपद की प्राप्ति हो जाती है। इसी तथ्य को विलोककर अध्यात्मिक सन्त योगीन्द्रदेव लिखने हैं
यावन्निवर्तते चिन्ता तावत्पारं न गच्छति ।
परमतत्त्व की प्राप्ति जिस जीव को हो जाती है, वह जीव कैसे रहता है ? जिसतरह मन से रहित होने पर काया सम्पूर्ण हलनचलनादि क्रिया से रहित हो जाती है, उसीतरह जिस जीव को परमतत्त्व की प्राप्ति हो जाती है, वह जीव सम्पूर्ण सांसारिक प्रपंचों से रहित हो जाता है। जिसे परमतत्त्व उपलब्ध हो गया है वह ध्यान, ध्याता और ध्येय के विकल्पों से अथवा सम्पूर्ण संकल्प और विकल्पों से रहित हो जाता है। वह जीव निज अखण्ड शाश्वत चैतन्यतत्त्व में वह सतत लवलीन रहता है।
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