Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 83
________________ 杂杂杂杂杂杂杂杂 ******** शालांकुशम् ******** * अर्थात् - कल यानि शरीर से जो युक्त है वह सकल है। मकल है आत्मा * * जो, वह सकल परमात्मा है। अरिहन्त परमेष्ठी सकल परमात्मा हैं। २. निकल परमात्य - निर्गतः कलो यस्य सः निकलः। जिसका * शरीर नष्ट हो चुका है वह निकल है। * आचार्य श्री पद्मप्रनतधारी देव लिखते हैं - * निश्चयेनौदारिकवैक्रियकाहारकतैजसकर्माणाभिधानशरीर * पञ्चाभावान्निकलः। (नियमसार) अर्थात् : निश्चय से औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस और कार्मण इन पाँच शरीर का अभाव हो जाने से वे निकल हैं। सिद्ध परमेष्ठी निकल परमात्मा हैं। पण्डितप्रवर दौलतराम जी ने लिखा है . सकल निकल परमातम वैविध, तिनमें घाति निवारी। श्री अरिहन्त सकल परमातम, लोकालोक निहारी।।* ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल, वर्जित सिद्ध महन्ता। ते हैं निकल अमल परमातम, भोगे शर्म अनन्ता।। (छहढाला - ३/५-६) * अर्थात् : सकल और निकल के भेद से परमात्मा दो प्रकार के हैं। उनमें * * से घातिकर्म का विनाश करने वाले,लोक और अलोक को जानने तथा * * देखने वाले श्री अरिहन्त परमेष्ठी सकल परमात्मा हैं। जिनका ज्ञान ही * शरीर है, जो तीनों प्रकार के कर्मरूपी मैल से रहित हैं, जो मोक्ष के * अविनाशी सुख का उपभोग कर रहे हैं ऐसे सिद्ध परमेष्ठी निकल परमात्मा । ****杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂** 路路路路路路路路路路路路路杂路 * हैं। * यद्यपि व्यवहार नय से तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवी जीव * * सकल परमात्मा व गुणस्थानातीत लोकाग्रशिखर पर स्थानापन्न सिद्ध * परमेष्ठी निकल परमात्मा हैं। ये दोनों ही परमात्मा आराधना करने हेतु * ध्येयभूत हैं, तथापि निश्चयनय से मेरा शुद्धात्मा ही उपासनीय है ऐसा * जानना चाहिये । **********७३ **********

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