________________
***** ज्ञानांकुशम्
ध्यान का फल
********
श्रूयते ध्यानयोगेन सम्प्राप्तं पदमव्ययम् । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन कुर्याद् ध्यानं बुधोत्तमः ॥ २७ ॥
,
"
अन्दय
(ध्यानयोगेन) ध्यानयोग से (अव्ययम्) अव्यय (पदम् ) पद को (सम्प्राप्तम्) प्राप्त करता है ऐसा (श्रुयते) सुना जाता है। (तस्मात् ) इसलिए (सर्व) सम्पूर्ण (प्रयत्नेन) प्रयत्न से ( बुधोत्तमः ) बुद्धिमानों में भी उत्तम पुरुष (ध्यानम् ) ध्यान (कुर्यात् ) करें।
अर्थ : ध्यान के योग से ही जीव अव्यय पद को प्राप्त करता है ऐसा सुना जाता है। इसलिए बुध्दिमान जीवों को प्रयत्नपूर्वक ध्यान करना चाहिये।
भावार्थ : ध्यान का अर्थ है निज शुद्धात्मा का अवलोकन | ध्यान रामद्वेष और मोह की भीड़ से तनहा होने का एक सुन्दर विज्ञान है। ध्यान पर से मुक्ति और स्व में रममाण होने की जीवन्त प्रक्रिया है। ध्यान दृष्टा -पन की प्राप्ति का प्रथम चरण है।
आर्ष ग्रन्थों में ऐसा उपदेश पाया जाता है कि मनुष्यलोक से प्रत्येक छह माह और आठ समयों में छह सौ आठ जीव मोक्ष जाते हैं। . अनादिकाल से अद्यावधि पर्यन्त अनन्तानन्त जीव मोक्ष गये हैं तथा आगे भी जाते रहेंगे। वे सब कर्मक्षपणार्थ ध्यानतप का अवलम्बन लेते हैं। यही कारण है कि ध्यान का महत्त्व बताते हुए जैनाचार्यों ने जैनागम के 'अनेक पृष्ठ भर दिये हैं।
आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने लिखा है अप्पसरूवालंबण भावेण दु सव्वभावपरिहारं ।
-
सक्कदि कादु जीवो तुम्हा झाणं हवे सव्वं । ।
( नियमसार १९९ )
-
अर्थात् : आत्मस्वरूप के अवलम्बनरूप भाव से यह जीव सम्पूर्ण ********************
७४