Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 82
________________ ******** ज्ञालांकुश ******** परमात्मा के भेद परात्मा द्विविधः प्रोक्तः, सकलो निष्कलस्तथा। सकलोऽर्हत्स्वरूपो हि, सिद्धो निष्कल उच्यते ॥२६॥ * अन्वयार्थ : *(सकलः) सकल (तथा) तथा (निष्कला) निष्कल (द्विविधः) दो प्रकार * * का परात्मा) परमात्मा (प्रोक्तः) कहा है (हि) निश्चय से (अर्हत्स्वरूपः) * अरिहन्त परमेष्ठी (सकलः) सकल परमात्मा है (सिद्धः सिौं को (निष्कलः) निकल परमात्मा (उच्यते) कहते है। * अर्थ : परमात्मा सकल और निकल के भेद से दो प्रकार के हैं। अरिहन्तों को सकल तथा सिद्धों को निकल परमात्मा कहते हैं। * भावार्थ : जब यह जीव अभेद रत्नत्रय की साधना करता है, तन्त्र क्षपक * * श्रेणि पर आरूढ़ होकर समस्त कर्मों का विनाश करता हुआ अपने परमात्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है। परमश्चासौ आत्मा परमात्मा - परम है जो आत्मा, वह है परमात्मा। * पण्डित प्रवर आशाधर ने लिखा है - * परमः अनाध्येयाप्रहयातिशयत्वात्सकल संसारि जीवेभ्यः उत्कृष्ट *आत्मा चेतनः परमात्मा। (इष्टोपदेश टीका-१)* अर्थात् : जो अनाध्येय, अप्रहेय अतिशय के कारण सम्पूर्ण संसारी जीवों में उत्कृष्ट हैं वे चैतन्यात्मा परमात्मा हैं। - परमात्मा के दो भेद हैं - सकल परमात्मा और निकल परमात्मा। * * १. सकल परमात्मा - आचार्य श्री प्रभाचन्द्र लिखते हैं - * सह कलया शरीरेण वर्तत इति. सकलः। चासावात्मा. सकल * परमात्मा **********७२**********

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