Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 104
________________ ******** लाश ******** * ४. कार्य करने की शक्ति का क्षरण होने लगता है। * ५. स्वभाव में असहजता उत्पन्न होती है। चिन्ताग्रस्त व्यक्ति का दिल घबराने लगता है, जिस से कभी* कभी दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती हैं। चिकित्साशास्त्रियों * का अभिमत है कि चिन्ता हृदयरोग का प्रमुख कारण है। * मानव के शरीर में थायरॉयह नामक एक ग्रंथि होती है। इसका स्थान कंठ में है। इसका कार्य है आवेगों तथा संवेगों पर नियन्त्रण करते रहना। इस ग्रंथि से निःसरण को प्राप्त होने वाले भारमोन द्वार ही * मानवीय भावनात्मक कोषों का प्रणयन होता है। इसी ग्रंथि के द्वारा ही * भावनात्मक संवेदनाओं पर या स्पन्दनों पर नियन्त्रण किया जाता है। * यह ग्रंथि क्रोध, मान, माया, लोभ और भयादि मानसिक आवेगों को * तीव्र, तीव्रतर या तीव्रतम अथवा मन्द, मन्द्रतर या मन्दतम कर सकती * है। मानसिक असन्तुलन में इस ग्रंथि का बहुत महत्त्व है। चिन्ता के कारण इस ग्रन्थि के कार्यों में बाधा उपस्थित होती है। चिन्ता इस ग्रंथि * में अत्यधिक चपलता का निर्माण करती है। इसकी गति विषम हो जाती. * है। कभी-कभी तो चिन्ता के कारण ग्रंथि अपने स्थान से च्युत हो जाती * है। इसके फल से - १. शरीर में बहुत मात्रा में उष्णता भड़कना, २. दिल की धड़कनों का बढ़ जाना, * ३. श्वास धौंकनी की तरह चलने लगना और *४. मांस, मजा, रक्तादि धातुओं का क्षीण होना आदि दुष्परिणाम * * परिलक्षित होते हैं। * चिन्ता के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में विशेषतः निद्रानाश व सिरदर्द आदि प्रमुख रोग हैं। एन्जीमा पेक्टोरिस नामक महाभयंकर व्याधि का कारण चिन्ता है। इस रोग में इतनी वेदना होती है कि आदमी * चीख-चीख कर बेहाल हो जाता है। इसीतरह मधुमेह, गठिया, जुकाम. * * उच्च रक्तचाप, उदरद्रणादि रोग चिन्ता के कारण उत्पन्न होते हैं। इसलिए * * ग्रंथकार कहते हैं कि चिन्ता से व्याधि होती है। चिन्ता के इन दुष्फलों को जानकर चिन्ता का अविलम्ब परित्याग कर देना चाहिये। **********[९४********** 举染染法染染路路路路杂杂染染染染学杂张张张张**路路路路路

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