Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 78
________________ ************************************* ******** ज्ञानाशाम ******** * रहित शास्त्र है। * २. प्रपंच से सहित गुछ - गुरु का स्वरूप बताते हुए आचार्य श्री शिवकोटि कहते हैं . दिगम्बरो निरारम्भो, नित्यानन्दपदार्थिनः। धर्मदिक कर्मधिक साघुर्गुरुरित्यच्यते बुधैः ।। (रत्नमाला - २८) अर्थात् : जो दिगम्बर हैं, निरारम्भ हैं, नित्यानन्द पद के इच्छुक हैं, जो *धर्म को बढ़ाने वाले हैं, जो कर्म को जलाने वाले हैं वे साधु हैं ऐसा * *बुधजनों ने कहा है। दिगम्बर : इस विहीन, पालाइ से हीन. कषायों से * उपरत, ज्ञान तथा ध्यान में तत्पर एवं आत्मतत्व की भावना में रत रहते है। इसलिए वे प्रपंच से रहित हैं। इससे विपरीत अन्यभेषी साधु महन्तपने * का भाव रखने वाले, विषयाशा से संसक्त, एकान्ताग्रह से रक्त, आरम्भ-* *परिग्रह से सम्पन्न, आत्मा और अनात्मा के ज्ञान से हीन, पाखण्ड के * पिटारे एवं मलिन चित्तवाले होते हैं। * ३. प्रपंच से रहित मोक्ष - आचार्य श्री उमास्वामी लिखते हैं कि - * बन्धहेत्वाभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्म विप्रमोक्षो मोक्षः। (तत्त्वार्थसूत्र - १०१२)* * अर्थात् : बन्ध हेतुओं का अभाव होनेपर और सम्पूर्ण कर्मों की निर्जरा* * होकर कर्मों का आत्यन्तिक क्षय हो जाना ही मोक्ष है। 3 अन्य मतावलम्बी सिद्धों का कुछ काल बाद संसार में पुनः आना मानते हैं। जैनशासन की मान्यता है कि दग्ध बीज जैसे अंकुरोत्पत्ति नहीं । * करा सकता, उसीप्रकार ही बन्धहेतुओं का अभाव हो जाने पर पुनः * * संसार में आगमन नहीं होता। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि मोक्ष में * * इन्द्रिय सुखों की बहुलता है। जैनशासन का कथन है कि सिद्धों को * ॐ अर्थात् मोक्षस्थ जीवों को अव्याबाध सुख तो होता है. परन्तु वह सुख । इन्द्रियजन्य या पराधीन नहीं है। जिनशासन का कथन निर्धान्त है, अतः जिनशासन द्वारा प्ररूपित * मोक्ष प्रपंच से रहित है। इसप्रकार शास्त्र, गुरु और धर्म आदि के * * समीचीन रूप को जानकर श्रद्धान करना चाहिये। ***********[६८ **********

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